आज का अखबार फ़िर खास है l अखबार में चूँकि खबरें होती है लिहाज़ा अखबार
तो खास ही होता है लेकिन कल कुछ दिन बाद फ़िर कुछ ऐसा हो गया कि आज का
अखबार खास हो गया l पंजाब के गुरदासपुर ज़िले के एक गाँव वीला तेजा के एक 32
वर्षीय किसान बलविंदर सिंह ने गरीबी और कर्ज़ का बोझ ना सह पाते हुए गले
में फंदा लगा कर ख़ुदकुशी कर ली l 18 वर्ष पहले बलविंदर के पिता महंगा सिंह
भी कर्ज़ के बोझ की वजह से दिल के दौरे की वजह से मर गए थे l हालाँकि ख़बर
ख़बर का अपना वजन होता है और एक 'ज़्यादा' वज़नी' ख़बर ने इसे दबा लिया l रितेश
देशमुख और जेनेलिया डिसूज़ा की शादी की ख़बर l बलविंदर की ख़ुदकुशी की ख़बर
हमारे न्यूज़ मीडिया के लिए पहले पन्ने की ख़बर वाली शर्तें पूरी नहीं करती l
पंजाबी अख़बारों तक की नहीं, एक आध को छोड़ कर l बाकी सब ने क्षेत्रीय
एडिशनज़ में इसे जगह तो दी है लेकिन सवाल ये है कि क्या ये एक राज्य के भी
किसी क्षेत्र तक सीमित एक छोटा-सा शगूफ़ा है और बॉलीवुड की एक अभिनेता जोड़ी
की शादी एक राष्ट्रिय स्तर के महत्व का एक समाचार ? क्या ये हमारी सामाजिक
संवेदनशीलता दर्शाता है या अखबार-चैनलों की प्राथमिकताओं को ? या दोनों को ?
आंकड़े कहते हैं कि पिछले दस वर्षों में पंजाब में दस हज़ार के आस पास किसान
और मज़दूर आत्महत्या कर चुके हैं l क्या शायद हम ज़रूरत से ज़्यादा सहनशील हो
चुके हैं ? सहनशील या उदासीन ? इस उदासीनता का एक ही कारण समझ में आता है;
इस सब के चलते हुए भविष्य के प्रति अनभिज्ञता l शायद हमें लगता है कि ये
जो किसी और के साथ घट रहा है ये किसी और की समस्या है हमारी नहीं l कहीं ना
कहीं हमें लगता ही नहीं कि हमारे साथ भी ऐसा होगा l Ostrich approach
अर्थात शतुर्मुर्गी पहुँच इसी को कहते हैं l सुना है बिल्ली के आगे कबूतर
ऐसा ही करता है l बिल्ली सब के सामने है और उसने हम सभी को ढूंढ भी लिया है
और रास्ता घेर भी लिया है l हम सब से मेरा तात्पर्य है वो सब जो भारत के
दस प्रतिशत धनाढ्य परिवारों से संबद्ध नहीं हैं l अर्थ विज्ञान हममें से
ज़्यादा का मनपसंद विषय नहीं है; ना भी हो लेकिन भविष्य के बारे में तो सभी
को सोचना पड़ेगा l मजबूरी है सोचना तो पड़ेगा ही l बलविंदर के डेढ़ और छह साल
के दो बच्चे, पत्नी और माँ अकेले रह गए है इस निर्मम
आर्थिक-राजनैतिक-सामाजिक प्रबंध में l सबसे पहली गलती हम से यह होती है कि
हम ऐसे किसी भी व्यक्ति के प्रति हमदर्दी मन में ले आते हैं l हमदर्दी खुद
से करनी होगी तब बात बनेगी l क्योंकि होने वाला सभी का यही है; किसी के साथ
जल्दी किसी के साथ देर से l किसी के साथ हूबहू, किसी के साथ मिलता जुलता,
इसी के साथ इस से भी बुरा l आर्थिकता एक चक्र में जुडी हुई है सबकी l समय
रहते सोचना होगा l
--- सुरमीत मावी